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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

अध्याय - 8

शैक्षिक विचारक एवं उनका योगदान : अरविन्दो, रवीन्द्रनाथ टैगोर,
राधाकृष्णन महात्मा गाँधी, दयानन्द सरस्वती एवं जे. कृष्णमूर्ति

(Educational Thinkers and their Contribution : Aurobindo,Rabindranath Tagore, Radhakrishnan, Mahatma Gandhi, Layanand Saraswati and J. Krishnamurti)

श्री अरविन्द घोष

प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अरविन्द के जीवन दर्शन एवं शिक्षा दर्शन को संक्षेप में समझाइए।
2. अरविन्द घोष के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
3. अरविन्द घोष के अनुसार शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
4. अरविन्द घोष के पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि के सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
5. अरविन्द घोष के अनुसार शिक्षक के स्थान एवं बालक के स्थान को बताइए।
6. अरविन्द घोष के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

श्री अरविन्द घोष
(Shri Aurobindo Ghosh)

श्री अरविन्द आदर्शवादी थे। उनके दर्शन का आधार उपनिषद् का वेदान्त था। वे जीवन में आध्यात्मिक साधना, योग तथा ब्रह्मचर्य को विशेष महत्व देते हुए विकास के सिद्धान्त में विश्वास करते थे। उनका कहना था कि विकास का लक्ष्य केवल एक ही है और वह हैसंसार में व्यापक दिव्य शक्ति अथवा पूर्ण एवं अखण्ड चेतना को प्राप्त करना।

जीवन दर्शन
(Philosophy of Life)

(1) मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य सत्, चित्त, आनन्द की प्राप्ति है। (2) भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों के अभेद को जानना ही सच्चा ज्ञान है। (3) ज्ञान के दो रूप हैं द्रव्यज्ञान (जगतज्ञान) तथा आत्मज्ञान। द्रव्यज्ञान साधारण ज्ञान है जबकि आत्मज्ञान उच्च कोटि का ज्ञान है। (4) वस्तुजगत का ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों द्वारा और आत्मतत्त्व का ज्ञान अन्त:करण द्वारा होता है। दूसरे प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति के लिये वे योग की क्रिया को आवश्यक मानते थे। (5) योगी के लिये यह आवश्यक है कि उसका शरीर स्वरूप, मन विकाररहित तथा जीवन संयमी हो। (6) सत्, चित्त, आनन्द की प्राप्ति के लिये कर्मयोग एवं ध्यानयोग आवश्यक है।

शिक्षा-दर्शन
(Educational Philosophy)

श्री अरविन्द का शिक्षा दर्शन, वस्तुतः ब्रह्मचर्य, आध्यात्मिक साधना और योग पर आधारित है। वे अन्तःकरण को शिक्षा का मुख्य अंग मानते हैं। अन्तःकरण के उन्होंने चार स्तर बताएचित्त, मनस, बुद्धि और ज्ञान। इन सभी शक्तियों का क्रमिक विकास होता है, अतः उनके अनुसार, शिक्षा का प्रमुख दायित्व है अन्त:करण की इन शक्तियों का विकास। उनके मतानुसार, शिक्षा मात्र ज्ञान की प्राप्ति नहीं है, वरन् शिक्षा वह है जो मानव का पूर्ण विकास करने की क्षमता रखती हो।

शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त
(Basic Principles of Educational Philosophy)


(1) शिक्षा बालक का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, चारित्रिक एवं संवेगात्मक विकास करे और उसे 'सम्पूर्ण मानव' बनाये। (2) शिक्षा व्यक्ति में निहित समस्त शक्तियों का इस प्रकार विकास करे कि वह उनसे पूर्ण रूप से लाभान्वित हो। (3) शिक्षा का केन्द्र बालक होना चाहिए। (4) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिये। (5) शिक्षा बालक में नैतिकता का विकास करे तथा उसके व्यावहारिक जीवन को सफल बनाये। (6) शिक्षा का आधार ब्रह्मचर्य होना चाहिये। (7) शिक्षा के विषय रोचक होने चाहिये। (8) शिक्षा में धर्म को स्थान अवश्य मिलना चाहिए, वरना भ्रष्टाचार फैलेगा। (9) शिक्षा बालक की मनोवृत्तियों और मनोविज्ञान परिस्थितियों के अनुकूल होनी चाहिये। (10) शिक्षा को चेतना का विकास करना चाहिए।

शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Education)

श्री अरविन्द चाहते थे कि शिक्षा मानव के मस्तिष्क तथा आत्मा की शक्तियों का निर्माण करे, साथ ही वह उसके ज्ञान, चरित्र एवं संस्कृति के उत्कर्ष में सहायक हो। श्री अरविन्द के अनुसार, शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा बालकों को कर्मठ नागरिक बनाये।

शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Education)

(1) बालक की शारीरिक शुद्धि एवं उसके शरीर का पूर्ण विकास करना।
(2) बालक के अन्त:करण का विकास करना।
(3) बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना।
(4) बालक की प्रकृति, आदतों और भावनाओं को शुद्ध और सुन्दर बनाना।
(5) बालक का नैतिक विकास करना।
(6) बालक को आध्यात्मिक पूर्णता की ओर अग्रसर करना।

 

पाठ्यक्रम (Curriculum)

श्री अरविन्द चाहते थे कि पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बालकों के भौतिक, नैतिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक सिद्ध हो। उनके अनुसार, शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पाठ्यक्रम के विषय निम्न प्रकार होने चाहिये -

(1) प्राथमिक स्तर - मातृभाषा, अंग्रेजी, फ्रेंच, सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, गणित व चित्रकला।

(2) माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर - मातृभाषा, अंग्रेजी, फ्रेंच, सामाजिक अध्ययन, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, गणित और चित्रकला।

(3) विश्वविद्यालय स्तर - भारतीय व पाश्चात्य दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, सभ्यता का इतिहास, अंग्रेजी साहित्य, गणित, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, विज्ञान का इतिहास, फ्रेंच साहित्य, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, जीवन का विज्ञान और विश्व एकीकरण (World Integration)।

शिक्षण-विधि
(Methods of Teaching)

श्री अरविन्द की शिक्षण-विधि निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है -

(1) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा।
(2) बालक की शक्तियों का विषयों की प्रकृति के अनुसार प्रयोग।
(3) बालक द्वारा किये जाने वाले प्रयासों व अनुभवों को प्रोत्साहन।
(4) स्वयं करके सीखना।
(5) बालक को स्वतन्त्रता प्रदान करना।
(6) शिक्षण-प्रक्रिया में बालक का सहयोग प्राप्त करना।
(7) बालक के साथ प्रेम व सहानुभूति का प्रदर्शन।

शिक्षक का स्थान
(Place of Teacher)

श्री अरविन्द के अनुसार, अध्यापक को बालकों की अभिरुचियों का अध्ययन करके, उन अभिरुचियों के अनुसार, बालकों के लिये शिक्षा की सामग्री का संकलन तथा प्रस्तुतीकरण करे। उसे ज्ञान बालकों पर लादना नहीं चाहिए वरन् उसे ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे बालक 'स्व शिक्षा' के पथ पर अग्रसर हों।

बालक का स्थान
(Place of the Child)

श्री अरविन्द ने शिक्षा में बालक को प्रमुख स्थान दिया है। उनके अनुसार, बालक का विकास उसकी रुचि तथा प्रकृति के अनुसार होना चाहिए। बालक की शिक्षा पूर्ण निर्धारित गुणों व आदर्शों के आधार पर आयोजित नहीं की जानी चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जो प्रत्येक बालक की विलक्षणताओं और क्षमताओं का विकास करने में सहायक हो।

शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
(Estimate of Education Philosophy)

श्री अरविन्द अपने देश की शिक्षा-पद्धति से असंतुष्ट थे। उनका विचार था कि भारतीय समाज और संस्कृति के कल्याण के लिये विदेशी शिक्षा-पद्धति से हमें मुक्ति पानी होगी। उनके अनुसार, केवल वह शिक्षा भारत के लिये कल्याणप्रद होगी जो भारत की आत्मा तथा भारत की वर्तमान और भावी आवश्यकताओं के अनुकूल हो। भारत के लिये वह शिक्षा कल्याणप्रद होगी जो भौतिकता के स्थान पर बालक में आध्यात्मिक दीप्ति को प्रज्वलित करे।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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